वसीयत बनी डबल मर्डर और खुदकुशी की वजह
वसीयत बनी डबल मर्डर और खुदकुशी की वजह
खेरागढ़ के गांव डांडा में बुधवार रात दो लोगों की हत्या व एक आत्महत्या के पीछे वसीयत थी। 15 बीघा जमीन के बंटवारे को लेकर 15 साल से चल रही लड़ाई ने बुधवार को खूनी रूप ले लिया था। गुरुवार को पिता-पुत्र का खेरागढ़ में व हत्यारे शिक्षक का अंतिम संस्कार पैतृक गांव मलपुरा के बरारा में किया गया। डांडा गांव निवासी बाबूलाल के तीन पुत्र शिवनारायण, महेंद्र व ओम प्रकाश थे। शिव नारायण के एक बेटा नथौली, ओम प्रकाश के दो बेटे पदम सिंह, लोकेंद्र जबकि महेंद्र सिंह के एक बेटी यादो देवी थी। बताया जाता है बाबूलाल ने करीब 45 बीघा जमीन का बैनामा दोनों नाती के नाम कर दिया था। वहीं महेंद्र सिंह की बेटी के हिस्से में कुछ नहीं आया। इसके बाद बाबूलाल ने दूसरे गांव की जमीन की वसीयत शिव नारायण व ओम प्रकाश की पत्नियों के नाम कर दी, जिसे लेकर दोनों भाइयों से महेंद्र सिंह के परिवार की रार चल रही थी। महेंद्र के दामाद एवं शिक्षक लक्ष्मी नारायण ने अपनी पत्नी यादो देवी के हक के लिए 15 साल पहले न्यायालय में वाद दायर कर दिया। शिव नारायण पक्ष का कहना है चार महीने पहले लक्ष्मी नारायण केस हार गया। जिसके बाद रंजिश गहराई और लक्ष्मी नारायण ने शिवनारायण और उसके बेटे की हत्या कर दी और फिर खुद को गोली मार ली। उधर, घटना के बाद से डाडा में व्याप्त तनाव पोस्टमार्टम गृह पर भी दिखाई दिया। दोनों पक्ष के लोग एक दूसरे के सामने नहीं आए। एसपी ग्रामीण (पश्चिम) डॉ. अरविंद ने बताया हत्याकांड के पीछे वसीयत व बैनामा का विवाद सामने आया है। मृतक की भतीजी जौली ने शिक्षक व उसके पुत्र के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई है। तमंचे से चली गोलियों पर उठे सवाल डांडा हत्याकांड को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं, जिनका जवाब पुलिस के पास नहीं है। पहला सवाल एक तमंचे से चार से पांच गोलियां चलने की बात गांव वालों के गले नहीं उतर रही। पुलिस हत्याकांड में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद नहीं कर सकी है। बताते हैं घटना के बाद तमंचा शिक्षक का पुत्र लेकर भाग गया। शिव नारायण पक्ष का कहना था कि हत्या शिक्षक ने की थी तो फिर बेटे को तमंचा लेकर भागने की क्या जरूरत थी। वह पुत्रों पर वारदात में शामिल होने की बात कह रहे हैं
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